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असहिष्णुता के मुद्दे पर देश दो हिस्सों में विभाजित होता हुआ प्रतीत हो रहा है।एक हिस्से का कहना है कि देश में सब ठीक है,कही कुछ गड़बड़ नहीं है।ये सरकार की छवि ख़राब करने को कोशिश की जा रही है।तो वही दूसरा हिस्सा इसके विरोध में जमकर प्रदर्शन कर रहा है और अपनी आवाज़ उठा रहा है।
पर प्रश्न ये है कि जब इतना धुँआ उठ रहा है तो आग कही तो लगी ही होगी।
गौरतलब है कि हाल ही में एक पुरस्कार समारोह में अभिनेता आमिर खान द्वारा दिए गए एक बयान पर के देश में बढ़ रही असहिष्णुता के कारण उनकी पत्नी किरण ने उन्हें एक बार देश छोड़ने की सलाह दी थी।इस पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएँ आ रही।आमिर ने जो कहा वो उनकी व्यक्तिगत राय थी।एक खास तबका आमिर के विरोध में आ गया है।उनका कहना है कि कल तक अतुल्य भारत के प्रचारक आमिर को आअज भारत असहिष्णु लगने लग गया।कुछ ने उन्हें देशद्रोही भी कहा तो कोई उन्हें पाकिस्तान जाने की भी सलाह दे रहा है।सोशल मीडिया पर आमिर माफ़ी मांगो ऐसी प्रतिक्रियाएँ आ रही है।उन्हें व् उनकी पत्नी किरण पर अभद्र टिपण्णी की जा रही है गालियां दी जा रही है।ऐसा करके आप लोग कौनसी सभ्यता का परिचय दे रहे है?ये कोई आम बात नहीं है इससे पहले भी शाहरुख़ खान और अन्य ऐसे लोग जिन्होंने विरोध में आवाज़ उठाई इस तरह के विरोध का शिकार हो चुके है।
एक खास तबके का कहना है कि देश में ऐसा पहले भी हुआ है?हमले हुए,दंगे हुए तब विरोध करने वाले लोग कहा थे?सही है,पर क्या ऐसा कहकर हम जो घटनाये हुयी उन्हें सामान्य मानकर चुप्पी साधे रहे?क्या दादरी कांड झूठा था?या कुलबर्गी या ऐसे अन्य लेखको की हत्या सामान्य थी?ये तो बस कुछ घटनाये है ऐसी कई घटनाएं है जो लोगो तक पहोचने से पहले ही दबा दी गयी है।क्या हम ऐसी अन्य घटनाओ के घटित होने का इंतज़ार करते रहेंगे।दरअसल यही समस्या है कि यह व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वंत्रता को भी दबाया जा रहा है ।एक तबका साथ मिलकर उस पर विरोध करता है।
ये बिल्कुल सही है कि भारत का मुस्लमान खुद को महफूज़ नहीं पा रहा है।बहुसंख्यकों द्वारा दबाये जाने का डर उन पर साफ़ दिखता है। मान लेते है कि आमिर या शाहरुख़ जैसी अन्य हस्तिया भारत छोड़ भी देती है तो बाकी 11% से अधिक मुस्लिम आबादी कहाँ जायेगी ।उनके लिए तो सभी द्वार बंद है।पाकिस्तान में भी कौन सी जन्नत है?यहाँ के मुस्लिम भारत की मिट्टी,हवा,पानी को अपना चूके है,उन्हें भी शांति से रहने दिया जाय।इस देश को हिदुराष्ट्र बनाने को कोशिशे ना की जाय।
सहिष्णुता,धर्मनिरपेक्षता(सेक्युलरिज्म)भारतीयो के खून में है,उनके डी.एन.ए में है।हमने प्रत्येक संस्कृति और धर्म का खुले हाथो से स्वागत किया है।चाहे वो मुग़ल हो या द्रविड़ या अन्य कोई।विविधता में ही एकता भारत की पहचान है।इस देश को हिंदूराष्ट्र बनाने की व् इसकी पहचान को हानि पहुँचाने की नाकाम कोशिशे ना की जाय।
व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा को दबाकर,उसका चौतरफ़ा विरोध करके एक सफल राष्ट्र का निर्माण कभी नहीं किया जा सकता।सशक्त लोकतंत्र ही स्वस्थ राष्ट्र की पहचान है।देश में होने वाली घटनाओ को सामान्य मानकर व् उन्हें नजरअंदाज करने के बजाय उनका हल ढूँढने पर ही हम भारत को पुनः शांति का प्रतिक बना पाएंगे।तब वो कहा थे?तब आपने कुछ क्यों नहीं किया या कहा?ऐसे बेतुके तर्क देने के बजाय हल ढूंढें।हम जहाँ है,वहाँ से खुद निकलिए और देश को भी निकालिये।
लोकेश सिंह
खंडवा (म.प्र)
मोब नो. +918871400231
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