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कृषि कृषक व् उनके आँसू

दस्तक
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भारत एक कृषिप्रधान देश है।यहाँ 60 प्रतिशत आबादी अभी भी रोजगार के लिए कृषि पर आधारित है और कृषि मॉनसून पर।मॉनसून अब विदाई की ओर है,तथा इस वर्ष भी सूखे के आसार साफ नज़र आ रहे है।100 वर्षो मे ये चौथा मौका है जब लगातार दो वर्षो से सूखा पड़ा हो।मौसमी सूखे से बचने का कुशल प्रबंधन व स्थायी नीति का अभाव अभी भी बना हुआ है।ऐसे में ये कहना गलत नही होगा कि धरती का पेट चीरकर अनाज उगानेवाले अन्नदाता अर्थात किसान भुखमरी और बेरोजगारी का शिकार हो सकता है।
            कृषि व कृषक सदियो से लोगो का पेट भरते आये है।ऐसे मे किन्ही अन्य विषयो पर ध्यान देने के बजाय सरकार को इस ओर ध्यान देने की सख्त आवश्यकता है।गिरता हुआ जलस्तर,बढ़ती हुई महंगाई,सूखते हुए कुँए व तालाब तथा आत्महत्या करते हुए किसान ये चीखकर कह रहे है कि अभी भी यदि इन समस्याओ से निपटने का कुशल प्रबंधन नही किया गया तो निश्चित ही एक दिन भारत की अधिकतर आबादी भूख से मर रही होगी।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार सन् 1995-2015 तक भारत मे 2,96,438 किसान आत्महत्या कर चुके है व अकेले महाराष्ट्र मे यह आँकड़ा 60,700 पार कर चुका है।महाराष्ट्र का मराठवाड़ा तो किसान आत्महत्या की राजधानी बन चुका है।महाराष्ट्र के अलावा तेलंगाना,आंध्र प्रदेश,कर्नाटक व केरल जैसे राज्य भी इस सूची मे शामिल है।ऐसे हालात मे यदि किसान राहत राशि की मांग करता है तो उस पर राजनीति शुरू हो जाती है।इसलिए जरूरत है ऐसे स्थायी समाधान की जो किसानो की आत्महत्या को रोक सके व उन्हें भुखमरी से बचा सके।
             वर्ष 2014 मे 12 फीसदी बारिश काम हुई जिसके कारण 2015 के जून तक अनाज के कुल उत्पादन मे 4.7 फीसदी कमी हुई है ।इस वर्ष ये हालात और भी बिगड़ सकते है ।इसलिए इसके निराकरण की सख्त आवश्यकता है।प्राकृतिक आपदाओ को रोका नही जा सकता परन्तु कृषि संबंधी जोखिमो को तो रोका ही जा सकता है।पशुपालन को बढावा देकर भी इसे बचाया जा सकता है।कृषि से संबंधित व्यवसायो से ही इसकी क्षति की पूर्ति की जा सकती है।ऐसा नही है कि  बड़े उद्योगों को बढ़वा देने से कृषि की कमी को पूरा किया जा सके।किसानो को ज्यादा उत्पादन व ज्यादा लाभ प्राप्त हो सके इसके लिए कोल्डस्टोरेज व लघु उद्योगों को पुरजोर बढ़ावा देना होगा।
            किसान की बढ़ती हुई समस्याओ का कारण प्राकृतिक आपदाओ से ज्यादा सरकार की असफल नीतिया है।कृषक के पास कृषि के अलावा रोज़गार के कोई अवसर नही है।8 माह के बाद उसे चार माह बेरोजगार ही रहना पड़ता है।प्राकृतिक आपदायें हर साल फसल को बरबसद करती है।कभी अनावृष्टि तो कभी अतिवृष्टि के रूप मे।मुआवज़े व राहत के नाम पर हक़ीक़त से ज्यादा सियासत दिखाई देती है।सरकारी योजनाये व राहत कार्य किसान तक पहुँचते ही नही है।ऐसे मे आवश्यकता है गाँवो मे सिचाई की सुविधा के साथ-साथ लघु उद्योगो को भी बढ़ावा दिया जाये ताकि किसान अपनी आजीविका तो प्राप्त कर सके।
             कृषि संबंधी समस्याएं केवल कृषक की ही नही बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र की बं जाती है।ऐसे मे सरकार का दायित्व बनता है कि वो अन्नदाता के आंसू रोकने के लिए जल्द से जल्द कोई ठोस कदम उठाये।
लोकेश सिंह
खंडवा,मध्य प्रदेश
+918871400231
            
            

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