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हमारी संस्कृति हमारी पहचान

दस्तक
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हमारी संस्कृति हमारी पहचान होती है।किसी भी राष्ट्र की पहचान के पहलूओं मे उसकी संस्कृति भी महत्वपूर्ण होती है।भारत सदियो से अपनी संस्कृति और विरासत के लिए विश्व धरातल पर जाना जाता है।परन्तु वर्तमान दौर मे हम इस संबंध मे पिछड़ते जा रहे है।भारतीय संस्कृति मे आये कुछ अहितकारी बदलाव इसके स्पष्ट संकेत है।हमारी संस्कृति सदैव “अतिथि देवो भव्”के लिए जानी जाती है परन्तु विगत कुछ वर्षो मे विदेशी सैलानियो मुख्यतः महिलाओ से हुई यौन हिंसा ने इसे शर्मशार किया है।
“वसुधैव कुटुम्बकम” का भाव सदैव से धारण किये हुए भारतीय समाज ने समग्र वसुधा को अपना परिवार माना है।परन्तु वर्तमान मे विश्व तो दूर सामूहिक परिवार मे ही कलह देखने को मिलते है।क्षेत्र,राज्य और समुदाय के नाम पर हुए बटवारे ने भारत को बाँट दिया है।
“अनेकता मे एकता” के लिए विश्व विख्यात भारत आज धर्म के नाम पर विभाजित होता प्रतीत हो रहा है।कबीर ने कहा था “भारत ऐसा राष्ट्र है जह हिन्दू व मुस्लिम एक ही घाट पर पानी भरते है ऐसे राष्ट्र मे जन्म लेना मेरा सौभाग्य है।”होली,दिवाली,ईद हो या रमजान जहाँ सभी भारतीय एक थे ।त्योहार किसी विशेष धर्म का ना होकर समग्र राष्ट्र का था,जहाँ मुस्लिम फटाके फोड़ते थे व हिन्दू ईद मुबारक कहते थे ऐसे राष्ट्र मे आज धर्म के नाम पर साम्प्रदायिक दंगे हो रहे है।निर्दोषो की जाने जा रही है जिसका उदाहरण हाल ही मे हुई कुछ घटनाओ से ज्ञात होता है।
ऋषि,मुनियो की इस संस्कृति को कुछ ढोंगी पीर बाबाओ ने शर्मशार किया।हिन्दी भाषा के कारण विश्व धरातल पर पहचान प्राप्त करने वाले भारतीय आज हिन्दी बोलने से कतराते है।रामायण व गीता कुछ ही घरो मे मिलेगी।तो संस्कृत कुछ गीने चुने स्थानों पर व लोगो द्वारा बोली व समझी जाती है।गाँवो मे चौपालो पर बुजुर्गो की भीड़ अब कही देखने को नही मिलती तो पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करने की वो रीत कही गुम सी गयी है।
“अहिंसा परमो धर्म्”के भाव वाले इस राष्ट्र मे विगत कुछ वर्षो मे हुई हिंसा ने समग्र विश्व को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या ये वही देश है जहाँ गांधी जैसे शांतिप्रिय दूत ने अहिंसा का संदेश दिया था?
बेशक योग को विश्व धरातल पर लाकर भारत ने ये साबित भी किया कि वो आज भी विश्व गुरु है।
हमारी भारतीय संस्कृति सदैव से अमर रही है।क्योंकि यह स्वयं मे सम्पूर्ण को समेटे हुए है। परन्तु इसकी पहचान कही खोती जा रही है।हमारी कुछ कमीया,कुछ ऐसे कृत्य इसे दागदार करते है। भौतिकवादी इस युग मे हम इतना भी गुम ना हो जाये कि अपनी संस्कृति अपनी पहचान ही विसार दे।हमे जरूरत मात्र इसे बचाने की नही अपितु इसे आगे बढ़ाने की भी है।

लोकेश सिंह
खंडवा (म.प्र)
मोब:-+918871400231

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